शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

कला की देवी माँ सरस्वती की पूजा का दिन, बसंत पंचमी

बसंत पंचमी 24 जनवरी 2015 
संत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या? जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, चित्रकार हो या मूर्तिकार, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
वसंत पंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों मे सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा। इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
"प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु "।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है।पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। 

सोमवार, 12 जनवरी 2015

अखिल भारतीय कला प्रदर्शनियों में चयनित कलाकारों की सूची

ललित कला अकादमी , नई दिल्ली द्वारा आयोजित 56 वीं राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में चयनित कलाकारों की सूची :-
क्लिक करें :
http://lalitkala.gov.in/upload/List%20of%20Selected%20art%20Works%20for%2056%20National%20exhibition%20of%20%20%20Art.pdf

एस. सी. जेड. सी. सी., नागपुर  द्वारा आयोजित  28 वीं समकालीन राष्ट्रीय कला प्रदर्शनी में चयनित कलाकारों की सूची :-
क्लिक करें :
http://www.sczcc.gov.in/Results.aspx

शुक्रवार, 2 जनवरी 2015

आर्ट सिखाता है स्कित्जोफ्रेनिया से लड़ने का हुनर

सौजन्य :
स्कित्जोफ्रेनिया के रोगियों को अपने विचारों को व्यक्त करने और बातचीत करने में परेशानी होती है। कई बार उन्हें डर, अकेलापन सताता है, जिसकी वजह से वो लोग खुद को दुनिया से अलग-थलग कर लेते हैं मिलना-जुलना छोड़ देते हैं। इन परिस्थितियों में जहां दवा अपना काम करती है वहीं कुछ अल्टरनेटिव थैरेपी भी काफी कारगर सिद्ध होती है उन्हीं में से एक है आर्ट थैरेपी।
किस प्रकार काम करती है यह थैरेपी
इसमें थैरेपिस्ट की मदद से रोगी अपने विचारों को क्रिएटिव तरीके से व्यक्त करते हैं। आमतौर पर आर्ट थैरेपी ग्रुप में की जाती है, जिसमें रोगी पेंट, ड्रॉ, स्कल्पचर के साथ-साथ आर्ट की अन्य विधाओं में हिस्सा लेता है। इसके बाद थैरेपिस्ट रोगी द्वारा तैयार किए गए आर्टवर्क के जरिए उसकी दुनिया में जाने का प्रयास करता है और उसके अंदर किस तरह के विचार चल रहे हैं उसे समझने की कोशिश करता है।
क्या मिलता है लाभ
स्कित्जोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज आवश्यक इलाज कराने का विरोध करता है या इससे अनिच्छा जाहिर करता है। इसकी वजह से उनकी दिलचस्पी कई चीजों से खत्म हो जाती हैं और वो खुद को अकेला महसूस करते हैं। आर्ट थैरेपी के जरिए उनके विचारों को उनके अनुसार ही व्यक्त कराया जाता है, जिसमें वो अधिक सहज महसूस करते हैं। इसके जरिए वो सोशल स्किल सीखते हैं और उनमें आत्मविश्वास का स्तर भी बढ़ जाता है।
कई शोधों में आर्ट थैरेपी के लाभ के बारे में निम्न प्रकार की बातें सामने आई हैं:
  • रोगी के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • नकारात्मक चीजें कम होती हैं, जैसे किसी काम को करने के लिए प्रेरित न होना, बातचीत में दिलचस्पी न लेना।
  • सामाजिक और भावनात्मक रूप से विमुख हो जाना।
समझने लगते हैं खुद को
आर्ट थैरेपी के जरिए मरीज अपने विचारों और भावनाओं को सही तरीके से समझ पाता है। उदाहरण के लिए ऐसे में मरीज अपनी खीझ को रेखाचित्रों या पेंटिंग के जरिए कागज पर उतारता है तो उसके मन का बोझ हल्का हो जाता है। साथ ही साथ अपनी बातें काउंसलर से बेहतर तरीके से शेयर कर पाता है और उन पर अमल कर पाता है।
और भी हैं कई लाभ
मानसिक और शारीरिक लाभ के साथ-साथ आर्ट थैरेपी से मिलने वाले फायदे यहीं आकर खत्म नहीं होते। दर्द, एंग्जाइटी और तनाव जैसी सामान्य परेशानियों में भी यह लाभप्रद है। गंभीर भावनात्मक आघात से उबरने में भी आर्ट काफी लाभप्रद साबित होता है। कैंसर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, बायपोलर डिसऑर्डर में भी आर्ट फायदेमंद है।
- See more at: स्कित्जोफ्रेनिया के रोगियों को अपने विचारों को व्यक्त करने और बातचीत करने में परेशानी होती है। कई बार उन्हें डर, अकेलापन सताता है, जिसकी वजह से वो लोग खुद को दुनिया से अलग-थलग कर लेते हैं मिलना-जुलना छोड़ देते हैं। इन परिस्थितियों में जहां दवा अपना काम करती है वहीं कुछ अल्टरनेटिव थैरेपी भी काफी कारगर सिद्ध होती है उन्हीं में से एक है आर्ट थैरेपी।
किस प्रकार काम करती है यह थैरेपी
इसमें थैरेपिस्ट की मदद से रोगी अपने विचारों को क्रिएटिव तरीके से व्यक्त करते हैं। आमतौर पर आर्ट थैरेपी ग्रुप में की जाती है, जिसमें रोगी पेंट, ड्रॉ, स्कल्पचर के साथ-साथ आर्ट की अन्य विधाओं में हिस्सा लेता है। इसके बाद थैरेपिस्ट रोगी द्वारा तैयार किए गए आर्टवर्क के जरिए उसकी दुनिया में जाने का प्रयास करता है और उसके अंदर किस तरह के विचार चल रहे हैं उसे समझने की कोशिश करता है।
क्या मिलता है लाभ
स्कित्जोफ्रेनिया से पीड़ित मरीज आवश्यक इलाज कराने का विरोध करता है या इससे अनिच्छा जाहिर करता है। इसकी वजह से उनकी दिलचस्पी कई चीजों से खत्म हो जाती हैं और वो खुद को अकेला महसूस करते हैं। आर्ट थैरेपी के जरिए उनके विचारों को उनके अनुसार ही व्यक्त कराया जाता है, जिसमें वो अधिक सहज महसूस करते हैं। इसके जरिए वो सोशल स्किल सीखते हैं और उनमें आत्मविश्वास का स्तर भी बढ़ जाता है।
कई शोधों में आर्ट थैरेपी के लाभ के बारे में निम्न प्रकार की बातें सामने आई हैं:
  • रोगी के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है।
  • नकारात्मक चीजें कम होती हैं, जैसे किसी काम को करने के लिए प्रेरित न होना, बातचीत में दिलचस्पी न लेना।
  • सामाजिक और भावनात्मक रूप से विमुख हो जाना।
समझने लगते हैं खुद को
आर्ट थैरेपी के जरिए मरीज अपने विचारों और भावनाओं को सही तरीके से समझ पाता है। उदाहरण के लिए ऐसे में मरीज अपनी खीझ को रेखाचित्रों या पेंटिंग के जरिए कागज पर उतारता है तो उसके मन का बोझ हल्का हो जाता है। साथ ही साथ अपनी बातें काउंसलर से बेहतर तरीके से शेयर कर पाता है और उन पर अमल कर पाता है।
और भी हैं कई लाभ
मानसिक और शारीरिक लाभ के साथ-साथ आर्ट थैरेपी से मिलने वाले फायदे यहीं आकर खत्म नहीं होते। दर्द, एंग्जाइटी और तनाव जैसी सामान्य परेशानियों में भी यह लाभप्रद है। गंभीर भावनात्मक आघात से उबरने में भी आर्ट काफी लाभप्रद साबित होता है। कैंसर, पोस्ट ट्रॉमैटिक स्ट्रेस डिसऑर्डर, बायपोलर डिसऑर्डर में भी आर्ट फायदेमंद है।